भोपाल। मध्य प्रदेश में अब यूनानी और आयुर्वेदिक डॉक्टर भी एमबीबीएस डॉक्टरों के समान अंग्रेजी दवाएं लिख सकेंगे। शुक्रवार को विधानसभा में यूनानी-आयुर्वेदिक डॉक्टर्स को अंग्रेजी दवाओं से इलाज की इजाजत का विधेयक पारित हो गया। हालांकि इस विधेयक के पास होने के बाद चिकित्सा जगत दो धड़ों में बंट गया है।
एलोपैथी पद्धति के चिकित्सकों में इस फैसले के बाद रोष है। इनका कहना है कि यह निणर्य सरासर गलत है। यह सीधे मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ है। इस निर्णय से होने वाले नुकसान का आंकलन नहीं किय जा सकता। वहीं इस फैसले के बाद आयुष चिकित्सक खुश हैं।
सरकार ने दिया ये तर्क
आयुर्वेदिक और यूनानी डॉक्टरों को एलोपैथी इलाज के प्रशिक्षण के बाद ही स्वास्थ्य संस्थाओं में तैनात किया जाएगा। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए यह बेहतर व्यवस्था है।
– रुस्तम सिंह, स्वास्थ्य मंत्री, मप्र
इस नियम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की हालत सुधरेगी। जहां एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है, वहां भी इलाज मिल सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों की बेहतरी के लिए यह जरूरी था।
-डॉ. नितिन एम नागरकर, प्रभारी निदेशक, एम्स भोपाल
विपक्ष ने उठाए सवाल
इस विधेयक पर विपक्षी सदस्यों ने सवाल उठाया कि संशोधन विधेयक के पहले एमसीआई की अनुमति लेनी चाहिए थी पर सरकार ने एेसा नहीं किया। कांग्रेसी विधायकों ने कहा, एमबीबीएस डॉक्टरों के स्थान पर सरकार अन्य दूसरे डॉक्टरों को एलोपैथी डिस्पेंसरी में तैनात कर रही है। सरकार की मंशा स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण करना है।
एलोपैथी डॉक्टर्स बोले- मरीजों की जान खतरे में डाली
– हम शुरू से ही राष्ट्रीय स्तर पर इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। यह निर्णय गलत है और इसे लागू करने से सिर्फ मरीजों की जान ही जाएगी। जो पढ़ाई करने में दस साल भी कम लगते हैं तीन महीने में वो कैसे सीखी जा सकती है। हम इसका विरोध करेंगे।
– डॉ. मेजर पी चंदेल, अध्यक्ष, स्टेट आईएमए
– सरकार द्वारा कहा गया है कि यह चिकित्सक सामान्य बीमारी में उपचार करेंगे, लेकिन यह तय कौन करेगा कि कौन सी बीमारी सामान्य है। डेंगू, मलेरिया और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारी के मौत के आंकड़े देखें तो यह कैसे सामान्य बीमारी हो सकती है।
– डॉ. संजय गुप्ता, अध्यक्ष, आईएमए, ग्रेटर भोपाल
ग्रामीण मरीजों की चिंता है तो नए चिकित्सकों की भर्ती करना चाहिए। आयुष चिकित्सकों को एलोपैथी की मान्यता देने से तो मरीजों की जान खतरे में डाल दी। वैसे भी यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की आवमानना है। आयुष से कई बीमारियां ठीक हो सकती है, एेसे तो यह पैथियां खत्म हो जाएंगी।
– डॉ. ललित श्रीवास्तव, संरक्षक, मप्र मेडिकल ऑफीसर्स एसो.
हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। आयुष चिकित्सक भी उन्हीं विषयों को पढ़ता है जो एमबीबीबएस या एमडी में होते हैं। एेसे में किसी चिकित्सक को तीन महीने का ट्रेनिंग पर्याप्त है। इस निर्णय जहां ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों को स्वास्थ्य सेवाए मिलेगी वहीं आयुष चिकित्कों के लिए भी फायदेमंद होगा।
– डॉ. राकेश पांडे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आयुष मेडिकल एसो.
हम लंबे समय से इस बात की मांग कर रहे थे। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वे नहंी चाहते कि अन्य पैथी आगे बढ़े। हमारी डिग्री भी एमबीबीएस और एमडी के समकक्ष ही है। हमें सर्जरी भी सिखाई जाती है। आयुष चिकित्सक कहीं से भी एलोपैथ से कमजोर नहीं है।
– डॉ. हसन अली, होम्योपैथी चिकित्सक
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